🌺🌺🌺🌺🌺मुकद्दर का आफताब जबसे ढलने लगा है
ख्वाहिशों का नशा तो और भी चढ़ने लगा है।
दगाबाजों के दरिया मे रहनुमा जब खुदा है
नाखुदा बनकर मेरा हौसला बढने लगा है।
इस दोस्ती मे इन रिश्तो मे अब खुशबू नही आती
जबसे इक गुलाब इस दिलमे पलने लगा है।
बेमोल पानी का इक कतरा सिपी मे क्या कैद हुआ
अनमोल मोती बनकर अब दुनिया मे खुलने लगा है।
भटकते मन के पंछी पे ऐतबार मत करना
आवारा वो पंछी अब हवा मे उडने लगा है।
चमकते उन रास्तों को पानी समझता है
बेवकूफप्यासा वो अहू भी उस और दौडने लगा है।
रात की इस तनहाई मे उस चाँद को क्या “दोस्त” कहा
अमावस की काली रात मे वो भी छुपने लगा है।
जबसे मै पढने लग!हू उस “मीर” की गजले
मेरी बेजान आँखोमे नूर दीखने लगा है।🌺🌺🌺