*ग़ज़ल: बशीर बद्र* खुद को
*ग़ज़ल: बशीर बद्र*
खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो *भीग जाया कर*।
चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से *जगमगाया कर*।
दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से *मत बहाया कर*।
काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में *मुस्कुराया कर*।
धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे *किसी बहाने आया कर*।
कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम *हाथ तो मिलाया कर* !